( तर्ज - हर जगह की रोशनी में )
आग है दिल में मेरे ,
कितनी दबाऊँ आखरी ?
खाक कर देगी मुझे ,
तनको जलावेगी पुरी ॥ टेक ॥
जिन्दगी हो प्रेमकी ,
तब तो मिले फल शान्ति का :
नहि तो तडपना दुःख है ,
क्योंकर करें यह नौकरी ॥ १ ॥
कष्ट करना सह सके ,
पर गम जो मन के साथ है ।
संगम हो सच्चे काम का ,
हो देश की अरमाँ पुरी ॥ २ ॥
चाहता में दिल से तुमको ,
पल तो देखूं रंग में ।
मिट जायगी अरमाँ मेरी ,
सुनके जरासी बाँसुरी ॥ ३ ॥
भेदका परदा हटाकर ,
हे प्रभू ! मुझ में समा ।
कहत तुकडया , देर मत कर ,
बंदगी कर दे पुरी ॥ ४ ॥
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